अस्तित्व रूपी डर भाग :- ८ " कठिन परीक्षा "
भाग :- ८
गतांक से आगे 👇
हमारे समाज में रोज - रोज के अधिकतर झगड़ों का अंत एक दिन दुखद ही होता हैं और कभी - कभी तों ऐसा हों है जिसकी कल्पना भी नहीं की गई होती हैं । भूषण की पत्नी अपने चारों बच्चों और अपने पति को छोड़ कर एक ऐसी यात्रा पर निकल गई जहाॅं से लौटना नामुमकिन होता है ।
गुस्से में व्यक्ति का विवेक शून्य हो जाता है और वह ऐसा कदम उठा लेता है जिसका परिणाम उसके बच्चों को उठाना पड़ता है । माॅं के द्वारा गुस्से में उठाए गए कदम ने भूषण के बच्चों को माॅं से अलग कर दिया साथ ही भूषण ने भी अपनी पत्नी को खो दिया ।
जिंदगी के सफ़र में भूषण ने अपने हमसफर को खो दिया था । कहते हैं ना ! खोने के बाद ही व्यक्ति या वस्तु की अहमियत का पता चलता है । भूषण किसी से कुछ कह तों नहीं रहा था लेकिन उसकी स्थिति मैं समझ रहा था ।
कुछ दिनों तक तो हम सभी ने उसकी आवाज भी नहीं सुनी । हमारे परिवार के लिए यह सबसे कठिन घड़ी थी और इस कठिन परीक्षा की घड़ी में मैं अपने भाई को अकेला कैसे छोड़ सकता था इसलिए मैं एक महीने की छुट्टी लेकर घर गया था ।
भूषण की बचपन से ही आदत थी कि वह अपनी तकलीफ को किसी के सामने प्रकट नहीं करता था ।
मैं उसकी तकलीफ़ समझ तों रहा था लेकिन मुझे इसका अफसोस था कि अपने भाई की तकलीफ़ का अंत हमेशा के लिए मैं नहीं कर सकता था ।
मैं घर पर एक महीने रहा । एक महीने में वह सूखकर कांटा हो गया था । मैंने उसे समझाया , उसके बच्चों का वास्ता दिया तब जाकर वह थोड़ा - बहुत अपने और बच्चों पर ध्यान देने लगा । एक महीने तों घर की सभी जरूरतों की पूर्ति मैंने की लेकिन कब तक मैं वहाॅं रह सकता था ?
एक महीने बाद मुझे अपनी बटालियन में लौटना पड़ा । उस समय घर में टेलिफोन भी नहीं था तो चिट्ठियों का ही सहारा था । गाॅंव के मुखिया जी के यहां टेलिफोन था जहां मैं एमरजेंसी में ही फोन करता था ।
पिछले दो-तीन तीन दिनों से मन बहुत विचलित था । रहा नहीं गया तों मैंने मुखिया जी के यहां फोन किया । पता चला कि भूषण बीमार है । उसे टायफाइड हों गया है । मेरा बेटा विक्की ही घर में सबसे बड़ा लड़का था । मैंने विक्की को बुलवाने के लिए मुखिया जी से कहा ।
मुखिया जी भले आदमी थे । वें हम सबके दुःख को जानते थे और जितना संभव हो मदद भी करते थे ।
उन्होंने अपने नौकर को मेरे घर भेजकर विक्की को बुलवा दिया ।
विक्की को मैंने डाॅक्टर से संबंधित सारी जानकारी समझा दी और उसे घर के बड़े बेटे के फर्ज का भी एहसास कराया । वह समझदार तों था ही , मेरी बातों को जल्दी ही समझ गया और मुझसे कहा कि मैं चिंता ना करूं वह सबकुछ वैसे ही करेगा जैसा मैंने उसे समझाया हैं ।
मैं चिंता कैसे नहीं करता ? मेरे से छोटे भाई का घर बिखर गया था और इसका जिम्मेदार वह अपने आप को मान रहा था ।
समाज के लोग भी तो मुॅंह पर ना सही लेकिन पीठ पीछे उसे ही उसकी पत्नी के जहर खाने की वजह मानकर उसे भला-बुरा कह रहें थे । उसे समझने वाला कोई नहीं था ।
भूषण अकेला पड़ गया था । पहले पत्नी ने उसकी भावनाओं को नहीं समझा और अब आस-पड़ोस और समाज के लोगो ने भी उसे समझने की कोशिश नहीं की । मैं समझता था लेकिन इतनी दूर से मैं उसके लिए कुछ नहीं कर सकता था ।
विक्की ने घर के बड़े बेटे का फर्ज बखूबी निभाया और उसकी मेहनत, लगन और समर्पण का ही प्रतिफल था कि भूषण स्वस्थ होकर पहले की भांति ही खेती-बाड़ी और घर की जिम्मेदारियों में अपने आप को समर्पित करने लगा । उसने लोगों की परवाह करनी भी बंद कर दी थी । अब वह सिर्फ घर, बच्चों और खेती-बाड़ी पर ही ध्यान देता था ।
धीरे - धीरे ही सही लेकिन अब जिंदगी पटरी पर आ रही थी । मैं खुश था कि कठिन परीक्षा तों जीवन में आई थी और हम सबने इसमें असफलता भी पाई थी लेकिन अपने धैर्य , साहस और संयम की बदौलत हम सबने देरी से ही लेकिन सफलता जरूर पाई थी ।
विक्की की मैट्रिक की परीक्षा नजदीक थी तों वह परीक्षा की तैयारी में जी-जान से जुट गया । भूषण ने उसकी हर कदम पर मदद की । परीक्षा दिलवाने का काम भी उसी के जिम्मे ही था । वह ही राजदूत पर परीक्षा दिलाने विक्की को लेकर जाता । दिन भर वहीं पर रहता क्योंकि उस समय दो सिटिंग की परीक्षा एक दिन में होती थी ।
परीक्षा दिलवाने के बाद वह विक्की को लेकर लौटता । घर आकर घर के कामों में लग जाता । उसने अपने आप को दिन के कामों में इतना व्यस्त कर लिया कि उसे खाने और आराम करने की फुर्सत ही नहीं मिलती थी ।
भूषण के बच्चे भी अपनी मम्मी को भूलकर मेरी धर्मपत्नी को ही माॅं समझने लगें थें । वह भी अपने तीनों बच्चों के समान ही भूषण के चारों बच्चों को समझती थी । घर के बाहर की जिम्मेदारी भूषण ने संभाल रखी थी तो घर के अंदर की जिम्मेदारी मेरी धर्मपत्नी ने ।
अम्मा अभी जिंदा थी लेकिन इस उम्र में उनसे ज्यादा की उम्मीद की भी नहीं जा सकती थी । अभी भी वह अपने उम्र से ज्यादा का काम खुद देखती थी । अम्मा की वजह से भूषण को भी मदद मिल जाती थी और साथ में मेरी धर्मपत्नी को भी ।
मेरी दो लड़कियां ज्यादा बड़ी तों नहीं थी लेकिन उम्र से पहले ही बड़ी हों गई थी । कहा जाता है ना ! लड़कों से पहले लड़कियां कम उम्र में ही बड़ी हों जाती है और उनके कामों और व्यवहार से मालूम चल जाता है कि यह लड़कियों ने कम उम्र रहने के बावजूद भी वह काम किया है । मेरी दोनों बेटियां अपनी पढ़ाई के साथ-साथ माॅं की मदद भी करने लगी थी ।
भूषण की तीनों बेटियों और एक बेटे की पढ़ाई - लिखाई मेरी दोनों बेटियां ही देख रही थी । उन्हें स्कूल भेजने से लेकर उनके कपड़े , किताबों और खान-पान का सारा ध्यान दोनों ही रखती थी ।
भूषण की बड़ी बेटी थी तो छोटी ही लेकिन समय से पहले अगर जिंदगी सबक दे जाएं तो इंसान को बड़ा बनना पड़ता है । मेरी दोनों बेटियों के पीछे - पीछे लगी वह भी छोटी उम्र में ही सबकुछ सीखना चाहती थी ताकि अपने से छोटे तीन बहनों और भाई की हर काम में मदद कर सकें ।
मैं यह सब देखकर खुश था कि एक बार फिर से घर खुशहाली की तरफ लौट रहा है और हम भाईयों का संयुक्त परिवार को साथ लेकर चलने का किया गया वादा पूरा हो रहा हैं ।
सबसे छोटा भाई अशेष अब अपनी पत्नी के साथ दूसरी जगह रह रहा था । दूसरी जगह से मेरा मतलब है अपने घर , शहर और राज्य से दूर किसी और राज्य में । मैं इस बात से भी खुश था कि वह हम सबसे दूर तो था लेकिन अपने स्वयं के परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहा था । उसके भी दो बच्चे थे । एक लड़की और उससे छोटा लड़का ।
अशेष की पत्नी ने भी उसी राज्य में किसी कंपनी में अपनी योग्यता के आधार पर नौकरी कर ली थी । बड़े शहरों में रहने के फायदे तो होते ही हैं , हमारे पास सारी सुविधाएं उपलब्ध होती है लेकिन उन सुविधाओं की पूर्ति करने के लिए हमें अत्यधिक पैसे खर्च करने पड़ते हैं और यह हम जैसे मध्यवर्गीय परिवार के लिए फायदेमंद नहीं नुकसानदेय का काम करता है ।
बड़े शहरों में रहने और अपनी और बच्चों की जरूरतों को पूरा करने में ही दोनों की तनख्वाह कम पड़ती थी ऐसे में वह गाॅंव के घर में अपनी जिम्मेदारियों को कैसे निभाता । हम दोनों भाई अपने छोटे भाई की स्थिति जानते थे इसलिए हमने उसे गाॅंव की जिम्मेदारियों से उसे दूर ही रखा था वैसे भी वह हम दोनों भाई , बहिन और अम्मा का लाडला जों था । वह भी इस बात को जानता था तभी तों वह जब छुट्टियों में घर आता था तों हम सबके पास बैठ कर अपनी जिम्मेदारी ना निभा पाने के लिए हमसे माफी माॅंगता था और हम सब उसे समझाने लग जातें थें ।
क्रमशः
" गुॅंजन कमल " 💗💞💓
# उपन्यास / धारावाहिक प्रतियोगिता
Seema Priyadarshini sahay
17-Feb-2022 06:17 PM
बहुत बढ़िया भाग
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Zakirhusain Abbas Chougule
17-Feb-2022 02:16 PM
Bahut hi sundar
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Punam verma
17-Feb-2022 09:24 AM
Nice
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